सैड शायरी (Sad Shayari)

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Shayari by Kashif Ahmad © www.hindishayaribest.com


(कोरोना की रंजिश)

कोरोना की रंजिश में वक़्त है ख़ली बंदिश में, लोग हैं ख़ली खतों में काम नहीं है हाथों में, नींद गयी इन बातों में ख़ून की प्यासी रातों में, अब दिल्ली है किस चक्कर में क्या कोरोना की टक्कर में |"©-काशिफ़-

Corona Ki Ranjish Mein Waqt Hai Khaali Bandish Mein, Log Hain Khaali Khaton Mein Kaam Nahi Hai Haathon Mein, Neend Gayi In Baaton Mein Khoon Ki Pyaasi Raaton Mein, Ab Dilli Hai Kis Chakkar Mein Kya Corona Ki Takkar Mein. ― Kashif "


  कोविड 19 के आने के बाद दुनिया बदल गई है, जब कोरोना शुरू हुआ तब वक्त खाली सा लग रहा था ऐसा लग रहा था, लेकिन अब कोई नहीं बचेगा। चारो तरफ सन्नाटा ही सन्नाटा लग रहा था पहली बार इतनी मौत में अपनी आंखों से देखी थी। तब मानो ऐसा लग रहा था कि अगला नंबर मेरा है, किसी के पास काम नहीं था गरीब मजदूर बहुत परेशान थे, लोग भीख तक मांगने लगे थे, सबकी जरूरतें उड़ गई थीं, खून की प्यासी रातें थीं और हमारी सरकार की तरफ से अजीब अजीब थी से काम कई जा रहे थाई, अल्लाह नई हमको एक ऐसा दौर दिखाया था जिसे हम सदियों तक नहीं भूल पाएंगे, वेसा कोरोना शायद इंसान का बनाया हुआ वायरस है इंसान नई कोरोना शायद इसे बनाया था कि दुनिया की बढ़ती आबादी ख़तम हो जाए, और एक दूसरे काउंटी को बर्बाद कर दिया जाए, लोगों का तो यहां तक ​​कहना है कि कोरोना की वैक्सीन से लोग जान गए हैं, आज लोगों को हार्ट अटैक आने की वजह से वैक्सीन के साइड इफेक्ट बताए जाते हैं, कुछ वैक्सीन जो अपना सही से काम नहीं कर पाती।

कोरोनावायरस (COVID-19) ने दुनिया के सामने एक गंभीर चुनौती खड़ी कर दी है। इस वायरस की पहचान सबसे पहले दिसंबर 2019 में चीन के वुहान शहर में हुई थी और तब से यह पूरी दुनिया में फैल चुका है। इस महामारी ने लाखों लोगों की जान ले ली है और स्वास्थ्य सेवाओं पर भारी दबाव डाला है।

 

कोरोनावायरस संक्रमण का मुख्य मार्ग एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलता है, जब संक्रमित व्यक्ति खांसता या छींकता है। इसके लक्षणों में बुखार, खांसी, सांस लेने में तकलीफ और स्वाद और गंध का न आना शामिल हैं। संक्रमण से बचने के लिए मास्क पहनना, नियमित रूप से हाथ धोना और सामाजिक दूरी बनाए रखना ज़रूरी है।

 

विज्ञान और चिकित्सा की उन्नति के साथ, विभिन्न प्रकार के टीके विकसित किए गए हैं, जिन्होंने इस महामारी पर काबू पाने में मदद की है। हालांकि, यह महत्वपूर्ण है कि लोग सतर्क रहें और स्वास्थ्य सुरक्षा उपायों का पालन करें। सरकारों और स्वास्थ्य संगठनों ने निरंतर प्रयास किए हैं ताकि टीकाकरण अभियान को जल्दी और प्रभावी ढंग से चलाया जा सके।

 

कोरोनावायरस महामारी ने हमें सिखाया है कि स्वास्थ्य और सुरक्षा के प्रति सतर्क रहना कितना महत्वपूर्ण है। इसने वैश्विक समुदाय को एकजुट होकर इस चुनौती का सामना करने का अवसर दिया है। निरंतर सावधानी और सहयोग से ही हम इस महामारी पर पूरी तरह से काबू पा सकते हैं।


(भूख लगती है)

भूख लगती है तो खाते हैं सब, थकते हैं तो सो जाते हैं सब, ये काम बख़ूबी निभाते हैं सब, फिर भी इंसान को नहीं समझ पाते हैं सब, ख़ुद को अलग दिखाते हैं सब, दूसरे को ग़लत बताते हैं सब, रख़तें हैं फ़र्क़ दिल में ख़ुदी से प्यार जताते हैं सब!! ©-काशिफ़ अहमद-

Bhookh Lagti Hai To Khaate Hain Sab, Thakte Hain To So Jaate Hain Sab, Ye Kaam Bakhoobi Nibhate Hain Sab, Phir Bhi Insaan Ko Nahi Samajh Paate Hain Sab, Khud Ko Alag Dikhate Hain Sab, Dusre Ko Ghalat Batate Hain Sab, Rakhte Hain Farq Dil Mein Khudi Se Pyaar Jatate Hain Sab.



इंसान और जानवर में ज्यादा फर्क नहीं है जब इंसान को भूख लगती है तो वो खाना खाता है ऐसे ही जानवर भी खाना खाता है। हम जानते हैं कि हम पढ़े लिखे हैं, अगर हम अपने दिमाग का इस्तमाल नहीं करते तो हमें और जानवर को कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा। थकते हैं तो हम सो जाते हैं दुनिया कर हर जीव जंतु थक कर सो जाता है, हर कोई ऐसा ही करता है, लेकिन फिर भी हम एक दूसरे को नहीं समझते, हम हमेशा रहने आए कोई ठीक साबित करने के लिए लगे रहते हैं और दूसरे से खुद को अलग दिखाते हैं, याई केसा दुनिया का दस्तूर है, हम एक दूसरे के लिए दिल में फर्क रखते हैं कहें वो कोई हमारा अपना ही कुन ना हो अपने घरवाले ही कुन ना हो, हम हमेशा अपने बारे में ही सोचते हैं सोचना भी चाहिए , सोचो अगर हम इंसान न होते तो क्या होता बस इतना ही फर्क होता कि हमको गुलाम बना लिया जाता और हमरा मालिक इंसा होता सारे खेल सोच का है हम एक जानवर की तरह सोचते हैं क्या हम एक जानवर की तरह ही सोच पाते हैं जिसका काम सिर्फ काना पीना सोना और बच्चे पेदा करना होता है। इंसान के अंदर भावनाएं होती हैं एक जानवर से ज्यादा वो हर काम सोच समझ कर करता है उसको सही और गलत का पता होता है और इंसान कल के बारे में मैं सोच कर अपना आज खराब नहीं करता जानवर की तरह, इस शायरी से ये ही मतलब है .

भूख एक गंभीर और व्यापक समस्या है जो आज भी कई देशों में व्याप्त है। यह सिर्फ पेट भरने का सवाल नहीं है, बल्कि यह स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक विकास से भी जुड़ा हुआ है। भूख के मुख्य कारण गरीबी, असमानता और संसाधनों का असमान वितरण हैं।

 

भारत जैसे देश में, जहाँ कृषि मुख्य व्यवसाय है, बड़ी संख्या में लोग भूख के शिकार हैं। पर्याप्त खाद्य उत्पादन के बावजूद, कई परिवारों को उचित पोषण नहीं मिल पाता है। बच्चों में कुपोषण की समस्या विशेष रूप से गंभीर है, जो उनके शारीरिक और मानसिक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है।

 

भूख से निपटने के लिए कई सरकारी और गैर-सरकारी संगठन सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं। सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस), मध्याह्न भोजन योजना और विभिन्न पोषण कार्यक्रमों के माध्यम से भोजन की उपलब्धता बढ़ाने के प्रयास किए जा रहे हैं। इसके साथ ही जागरूकता अभियान भी चलाए जा रहे हैं ताकि लोग पौष्टिक आहार के महत्व को समझें।

 

भूख के खिलाफ लड़ाई में हमें सभी का सहयोग चाहिए। व्यक्तिगत स्तर पर हम भोजन की बर्बादी को रोक सकते हैं और जरूरतमंदों की मदद कर सकते हैं। सामूहिक प्रयासों से ही हम इस समस्या का समाधान कर सकते हैं और एक स्वस्थ, समृद्ध समाज की स्थापना कर सकते हैं। भूख मुक्त विश्व हमारा लक्ष्य होना चाहिए और इसके लिए हर संभव प्रयास जरूरी है।

 

3- समाज में मर्दानगी को लेकर अलग-अलग धारणाएं हैं। परंपरागत रूप से मर्दानगी को शारीरिक शक्ति, साहस और आत्मविश्वास से जोड़कर देखा जाता है। लेकिन, आधुनिक संदर्भ में मर्दानगी का अर्थ अधिक व्यापक और समावेशी हो गया है। आज की दुनिया में मर्दानगी सिर्फ शारीरिक शक्ति तक सीमित नहीं है। इसमें भावनात्मक संवेदनशीलता, देखभाल और जिम्मेदारी लेने की क्षमता भी शामिल है। सच्चा मर्द वह है जो अपने परिवार, दोस्तों और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझता है और उनका निर्वहन करता है। मर्दानगी का एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि व्यक्ति अपनी भावनाओं को खुलकर व्यक्त कर सकता है। समाज में एक मिथक है कि पुरुषों को रोना नहीं चाहिए या अपनी भावनाओं को दबाना नहीं चाहिए। लेकिन भावनाओं को खुलकर व्यक्त करने से किसी की मर्दानगी कम नहीं होती, बल्कि यह मानसिक स्वास्थ्य के लिए जरूरी है। समाज में मर्दानगी की परिभाषा को फिर से परिभाषित करने की जरूरत है। हर व्यक्ति, चाहे वह पुरुष हो या महिला, अपने तरीके से सशक्त और महत्वपूर्ण है। मर्दानगी का सही अर्थ है खुद का और दूसरों का सम्मान करना, जिम्मेदारियों को पूरा करना और दयालु रवैया रखना। आखिरकार मर्दानगी का पैमाना बाहरी प्रदर्शन पर नहीं बल्कि आंतरिक गुणों और नैतिकता पर आधारित होना चाहिए। एक सच्चा मर्द वह है जो अपने मूल्यों और सिद्धांतों पर अड़ा रहता है और समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का प्रयास करता है।


(मर्द की मर्दानी)

इस दौर में मर्द को मर्द की मर्दानी अच्छी नहीं लगतीउस दौर में मर्द को नर सी नारी अच्छी नहीं लगतीहां हजरत को अब कोई बात पुरानी अच्छी नहीं लगतीखुश रहते हैं वो अब बस साथ कन्याकूमारी के, क्या उनको अपने जीवन की वो सौग़ात पुरानी अच्छी नहीं लगती। ©-काशिफ़ अहमद-

Iss Daur Mai Mard Ko Mard Ki Mardaani Acchi Nahi Lagti, Uss Daur Mai Nar Ko Nar Si Naari Acchi Nahi  Lagti Haan Hazrat Ko Ab Koi Baat Purani Acchi Nahi Lagti, Khush Rehte Hain Wo Ab Bus Saath Kanniyakumari Ke, Kya Unko Apne Jeewan Ki Wo Sogaat Purani Acchi Nahi Lagti.



पुराने जमाने का इंसान बहुत मजबूत था,आज कल के मर्दों में एक चीज कम है वो जितनी औरतों से मिलते हैं उनको उतना ही एडवांस समझ जाता है, हां नहीं बहुत अच्छे करने वाले मर्द या फिर यो यो हनी सिंह टाइप लोगों की आज हमारे समझ माई कमी नहीं है, हमरा समझ आज कल स्टैंडर्ड के चक्कर में अपनी मर्दानियत खो चुका है। औरतों की तरह दिखने में आज कल रोल मॉडल बने हुए हैं। आज कल मजबूत दिखने वाले लोगों को एक अलग नजर से देखा जाता है। पुराने ज़माने में जब औरतों के अंदर औरत पन नहीं होता था या जो मर्दों की तरह रहती थी या दिखती थी उनको अच्छा नहीं समझ आता था। आज कल औरत मर्दों से आगे निकल रही है यार अच्छी बात है मगर हमको अपनी मर्यादा नहीं खोनी चाहिए। जमाना इतना बदल चुका है कि पुराने लोग आज जिंदा हैं, उनको अपना पुराना दौर तो याद है मगर वो भी इस दौर में किसी से पीछे नहीं हैं, आज कल के बुजुर्ग भी बच्चों की तरह रंगीन लगते हैं। जो उनके बचपन की यादें थीं और जो उनका प्यार रहा होगा वो उसको भूल चुके हैं।

समाज में मर्दानगी को लेकर अलग-अलग धारणाएं हैं। परंपरागत रूप से मर्दानगी को शारीरिक शक्ति, साहस और आत्मविश्वास से जोड़कर देखा जाता है। लेकिन, आधुनिक संदर्भ में मर्दानगी का अर्थ अधिक व्यापक और समावेशी हो गया है। आज की दुनिया में मर्दानगी सिर्फ शारीरिक शक्ति तक सीमित नहीं है। इसमें भावनात्मक संवेदनशीलता, देखभाल और जिम्मेदारी लेने की क्षमता भी शामिल है। सच्चा मर्द वह है जो अपने परिवार, दोस्तों और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझता है और उनका निर्वहन करता है। मर्दानगी का एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि व्यक्ति अपनी भावनाओं को खुलकर व्यक्त कर सकता है। समाज में एक मिथक है कि पुरुषों को रोना नहीं चाहिए या अपनी भावनाओं को दबाना नहीं चाहिए। लेकिन भावनाओं को खुलकर व्यक्त करने से किसी की मर्दानगी कम नहीं होती, बल्कि यह मानसिक स्वास्थ्य के लिए जरूरी है। समाज में मर्दानगी की परिभाषा को फिर से परिभाषित करने की जरूरत है। हर व्यक्ति, चाहे वह पुरुष हो या महिला, अपने तरीके से सशक्त और महत्वपूर्ण है। मर्दानगी का सही अर्थ है खुद का और दूसरों का सम्मान करना, जिम्मेदारियों को पूरा करना और दयालु रवैया रखना। आखिरकार मर्दानगी का पैमाना बाहरी प्रदर्शन पर नहीं बल्कि आंतरिक गुणों और नैतिकता पर आधारित होना चाहिए। एक सच्चा मर्द वह है जो अपने मूल्यों और सिद्धांतों पर अड़ा रहता है और समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का प्रयास करता है।



(अकेला पक्षी)

एक अकेला पक्षी बैठा दूर तलक था सन्नाटाहाल जो देखा मैंने उसका वो भी लगा मुझे अपना सा,  कहने लगा चल आजा प्यारे तुझ को सैर कराऊं मैंदुनिया के इन अध्वारों से दूर तुझे ले जाऊँ मैं कहता भि क्या मैं उससे फिर भी बात ये ही बस कह पायाजा घूम के आजा दूर तलक तू फिर तुझ को लगुंगा मैं अपना सा, एक अकेला पक्षी बैठा दूर तलक था सन्नाटा |-काशिफ़ अहमद

Ek Akela Pakchi Betha Duur Talak Tha Sannata, Haal Jo Dekha Meine Uska Wo Bhi Laga Mujhe Apna Sa, Kehne Laga Chal Aaja Pyaare Tujhko Sair Karaon Mei, Duniya Ke Inn Adhwaaron Se Duur Tujhe Le Jaaun Mei, Kehta Bhi Kya Mein Ussay Phir Bhi Baat Yeh Hi Bus Keh Paaya, Jaa Ghoom Ke Aaja Duur Talak Tu Phir Tujh Ko Lagunga Mein Apna Sa, Ek Akela Pakchi Betha Duur Talak Tha Sannata.


हम इस दुनिया में अकेले आए हैं अकेले ही चले जाएंगेएक पैरेंड की तरह हम उड़ना चाहते हैं फिर हम अपना फैसला लेना खुद शुरू करते हैंअच्छे फैसले और बुरे फैसले सब हमारे ही होते हैं क्योंकि हम पक्षी नहीं हैं इसलिए ये जो भी करते हैं बहुत सोच समझ कर करते हैं और एक दिन अकेले हो जाते हैंकिसी कोन माई जा कर बैठ जाते हैं एक अकेली पक्षी की तरह जहां पर कुछ सन्नाटा होता हैमैंने उस पक्षी को देखा तो वो मुझे बिकुल मेरे जैसा लगाउसने मुझको देखा तो माई उसको उसका जेसा ही लगा वो मुझसे कहने लगा कि मैं उसके साथ चलूँ वो मुझे सारी दुनिया की तरफ ले जाएगाआसमान के रास्ते और दुनिया की सलाह से दूर हो जाऊँगाइस दुनिया में कुछ नया नहीं है वो मुझसे बोला मैं उसके साथ ही चलूं अब मैं उससे क्या बोलता हूं ये ही के पाया कि तू अकेला ही घूम कर आजा फिर तुझको लगेगा कि मैं तेरे जेसा ही हूं दोस्त फिर शायद तुझे पता लगेगा की मैं तेरे जेसा ही हूं। इस सवाल से ये ही मतलब है.

(ग़म ख़ुशी का)

"जब तरक्की किसी की होती है तब नुक़सान किसी का होता है

जब फिज़ा हंसी की होती है तब ग़म ख़ुशी का होता है |" ©-काशिफ़ अहमद-

Jab Tarakki Kisi Ki Hoti Hai Tab Nuksaan Kisi Ka Hota Hai. 

Jab Fiza Hasi Ki Hoti Hai Tab Gam Khushi Ka Hota Hai. 



हर कोई तरक्की चाहता है कुछ कामयाब हो भी जाते हैं कुछ नहीं भी हो पाते या फिर निर्भर करता है आपके जज्बे के ऊपर, अगर मान लीजिए दो लोग एक साथ भाग रहे हैं तरक्की के पीछे तब कोई पहले नंबर पर आएगा या फिर निर्भर करता है आपकी रफ़्तार के ऊपर जरूरी नहीं कि आप हाथ जोड़ों से ही प्यार करो, आप अपने दिमाग को तेज भगा कर भी तरक्की कर सकते हो, दुनिया माई बहुत सारे लोग ऐसे भी मिलेंगे जो लाइफ में कुछ करना ही नहीं चाहते, उनका दिल ही नहीं करता उनको ऐसे खाली रहने में सुकून मिलता है हर तरह के लोगों में ऐसे लोग पाए जाते हैं जरूरी नई कि वो सारे लोग बेकार हैं बहुत साईं लोग बहुत काबिल भी होते हैं और बहुत सारे लोग बहुत बेकार भी होते हैं। कुछ इंसान तो इसलिए भी कुछ नहीं कर पाते कहीं किसी का हक ना मारा जाए। कूकी जब तरक्की कोई होती तब कहीं न कहीं नुक्सान तो दूसरे का होता ही है और हम लोगों की फितरत है कि हम अपने दुख से नहीं दूसरे की खुशी से ज्यादा परेशान रहते हैं। वेसे मैं अगर आपके साथ अपनी बात रखूं तो मैं कहूंगा कि जियो और जीने दो का नारा सबसे अच्छा है।


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