Since 200 years famous poetry war so far between Ghalib till Kashif (zahid sharaab piine de masjid mein...) This immortal poetry is famous all around the world for many decades. I am very excited to write my reply in the end to this Mirza Ghalib poetry war enjoy along with the replies of some great poets like Allama Iqbal and in sequence. Kashif Ahmad reply in year 2019...
Mirza Ghalib-1) "ज़ाहिद-शराब पीने दे-मस्जिद में बैठ कर या वो जगह बता दे जहाँ पर खुदा न हो |"
(Zahid Sharaab Piine De Masjid Mein Baith Kar Ya Vo Jagah Bata De Jahaa.n Par Khuda Na Ho.)
उर्दू और फारसी के महान शायर मिर्जा गालिब का जन्म 27 दिसंबर 1797 को आगरा में हुआ था। उनका पूरा नाम मिर्जा असद-उल्लाह बेग खान था, लेकिन साहित्य जगत में वे मिर्जा गालिब के नाम से मशहूर हुए।
उनकी शायरी में भावनाओं की गहराई और विचारों की स्पष्टता बेमिसाल है। गालिब की सबसे बड़ी खासियत यह थी कि उन्होंने शायरी को एक नया आयाम दिया। उन्होंने न केवल प्रेम और सौंदर्य का वर्णन किया, बल्कि जीवन की कड़वी सच्चाई और मानव स्वभाव की जटिलताओं को भी दर्शाया।
उनकी शायरी में फारसी भाषा का प्रभाव साफ देखा जा सकता है, जो उन्हें अन्य शायरों से अलग करता है। उनके दीवान-ए-गालिब में उनकी बेहतरीन रचनाएँ हैं, जो आज भी पाठकों और श्रोताओं को रोमांचित करती हैं। गालिब की शायरी में दर्द और प्रेम की इतनी गहराई है कि उनके दोहे सीधे दिल में उतर जाते हैं।
मिर्ज़ा ग़ालिब
को अपने जीवनकाल में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उनके जीवन में व्यक्तिगत
त्रासदी, आर्थिक तंगी और सामाजिक तिरस्कार ने उनकी कविताओं
को एक अनूठी संवेदनशीलता से भर दिया। वे दिल्ली में रहते थे और यहीं उन्होंने अपने
जीवन के अंतिम दिन बिताए। मिर्ज़ा ग़ालिब का निधन 15 फरवरी 1869 को हुआ, लेकिन उनकी शायरी
आज भी ज़िंदा है और उर्दू साहित्य में उनका स्थान अमर है। उनकी कविताओं ने साहित्य
प्रेमियों के दिलों में एक ख़ास जगह बनाई है और उन्हें हमेशा याद किया जाएगा।
ग़ालिब का साहित्यिक योगदान उन्हें न केवल उर्दू शायरी का बादशाह बनाता है, बल्कि विश्व साहित्य में भी उनका अहम स्थान है।
Allama Iqbal-2) "मस्जिद ख़ुदा का घर है पीने की जगह नहीं काफ़िर के दिल में जा, वहाँ पर ख़ुदा नहीं |"
(Masjid Khuda Ka Ghar Hai Piine Ki Jagah Nahi Kafir Ke Dil Mein Jaa, Vahaa.n Par Khuda Nahi.)
मोहम्मद इकबाल, जिन्हें अल्लामा इकबाल के नाम से भी जाना जाता है। उनका जन्म 9 नवंबर 1877 को पंजाब के सियालकोट (अब पाकिस्तान में) में हुआ था। इकबाल के साहित्यिक योगदान और उनकी वैचारिक गहराई ने उन्हें उर्दू साहित्य के शिखर पर पहुंचा दिया।
इकबाल की कविताएँ आत्म-ज्ञान, मानवता और इस्लामी के विषयों पर केंद्रित हैं। उनकी रचनाओं में एक विशेष प्रकार की प्रेरणा और जुनून है, जो उनके समय की सामाजिक और राजनीतिक परिस्थितियों से गहराई से प्रभावित थे। इकबाल की प्रसिद्ध रचना "सारे जहाँ से अच्छा हिंदोस्तां हमारा" आज भी भारतीय उपमहाद्वीप में देशभक्ति के गीत के रूप में गाई जाती है।
उन्होंने लाहौर, कैम्ब्रिज और म्यूनिख से अपनी शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने म्यूनिख विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। उनकी कविताएँ भारतीय और इस्लामी संस्कृति का एक अनूठा मिश्रण हैं। इकबाल की कविताओं में गहन चिंतन और आत्मनिरीक्षण की भावना प्रकट होती है। उन्होंने अपने लेखन के माध्यम से एक आत्मनिर्भर, स्वतंत्र और आत्म-साक्षात्कार वाले समाज का सपना देखा।
इकबाल की प्रमुख रचनाओं में "बंग-ए-दारा", "बल-ए-जिब्रील", "पयाम-ए-मशरिक" और "अरमगान-ए-हिजाज़" शामिल हैं। उनकी फ़ारसी कविताएँ भी बहुत प्रसिद्ध हैं और उन्होंने फ़ारसी साहित्य को भी समृद्ध किया है। इकबाल को उनकी गहरी विचारधारा और बेहतरीन शायरी के लिए "मुफ़क्किर-ए-पाकिस्तान" (पाकिस्तान का विचारक) और "शायर-ए-मशरिक" जैसे उपनामों से नवाज़ा गया।
इकबाल का मानना था कि मुस्लिम समुदाय को एकजुट होकर अपने अधिकारों के लिए लड़ना चाहिए। उन्होंने पाकिस्तान के निर्माण का सपना देखा था, जो बाद में हकीकत बन गया।
मोहम्मद इकबाल का निधन 21 अप्रैल 1938 को हुआ, लेकिन उनकी कविताएँ और विचारधारा आज भी जीवित हैं और प्रेरणा का स्रोत बनी हुई हैं। उनकी रचनाएँ न केवल साहित्यिक उत्कृष्टता का उदाहरण हैं, बल्कि वे हमें एक बेहतर समाज की ओर भी ले जाती हैं।
Ahmad Faraz-3) "काफ़िर के दिल से आया हूँ मैं ये देख कर ख़ुदा मौजूद है वहाँ, पर उसे पता नहीं |"
(Kafir Ke Dil Se Aaya Hun Meiin Yeh Dekh Kar Khuda Maujood Hai Vahaa.n, Par Usay Pata Nahi.).
उर्दू शायरी के महान शायर अहमद फ़राज़ का मूल नाम सैयद अहमद शाह था। उनका जन्म 12 जनवरी 1931 को पाकिस्तान के कोहाट में हुआ था। फ़राज़ उर्दू साहित्य में अपनी अनूठी शैली, गहरी संवेदनशीलता और दिल को छू लेने वाली शायरी के लिए जाने जाते हैं।
वे ग़ज़ल और नज़्म के एक प्रभावशाली शायर थे, जिन्होंने अपनी रचनाओं से उर्दू साहित्य को समृद्ध किया। फ़राज़ की शायरी में प्रेम, दर्द, जुदाई और समाज के बारे में उनके गहरे विचार झलकते हैं। उनकी रचनाओं में एक ख़ास तरह की ताज़गी और मौलिकता है, जो उन्हें दूसरे समकालीन शायरों से अलग करती है।
उन्होंने अपने शब्दों के ज़रिए दिल को छू लेने वाले जज़्बातों को बेहद खूबसूरत तरीके से बयां किया। फ़राज़ के मशहूर शायरी संग्रहों में "ख़ानाबदोश", "तन्हाई का तारा", "बेबाकी" और "शब-ए-ख़ून" शामिल हैं। फ़राज़ की शायरी का जादू उनकी सरल लेकिन प्रभावी भाषा शैली में है। उनकी शायरी में सहजता और सरलता के साथ-साथ गहरे भावनात्मक आयाम भी हैं। उन्होंने अपने जीवन में कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त किए, जिनमें सबसे प्रतिष्ठित 'सितारा-ए-इम्तियाज' और 'हिलाल-ए-इम्तियाज' शामिल हैं।
अहमद फ़राज़ का निधन 25 अगस्त 2008 को हुआ, लेकिन उनकी शायरी आज भी ज़िंदा है और लोगों के दिलों में बसती है। उनके शेर और ग़ज़लें उर्दू साहित्य में अमर हो गए हैं और आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बने रहेंगे। उनकी रचनाओं ने उर्दू शायरी को एक नया आयाम दिया और उसे साहित्य जगत में एक अहम स्थान दिलाया।
Wasi Shah-4) "ख़ुदा तो मौजूद दुनिया में हर जगह तो जन्नत में जा वहाँ पीना मना नहीं |"
(Khuda To Maujood Duniyaa.n Mein Har Jagah Tu Jannat Mein Jaa Vahaa.n Piina Manaa Nahi.)
वसी शाह का जन्म 21 जनवरी 1973 को सरगोधा में हुआ था। वसी शाह की शायरी की सबसे बड़ी खासियत उनकी सादगी और सहजता है। उनके शब्द सीधे दिल को छूते हैं और गहरे भाव प्रकट करते हैं। वसी शाह की प्रमुख रचनाओं में "आंखें भीगती हैं", "तू मेरा है", "मुझे संदल कर दो" और "मोहब्बतें जब गिनूंगा" शामिल हैं। उनकी शायरी में प्रेम की गहराई और जीवन की वास्तविकता का अनूठा समन्वय है, जो पाठकों को बांधे रखता है।
वसी शाह का साहित्यिक योगदान केवल शायरी तक ही सीमित नहीं है। उन्होंने टेलीविजन धारावाहिकों और नाटकों के लिए भी लिखा है, जो उनकी रचनात्मकता और साहित्यिक कौशल को दर्शाते हैं। उनके द्वारा लिखे गए नाटकों ने दर्शकों के बीच लोकप्रियता हासिल की है और उनके लेखन की विविधता को प्रदर्शित किया है। उनकी शायरी में एक तरह की सच्चाई और यथार्थ झलकता है, जो पाठकों को आत्मचिंतन करने पर मजबूर करता है।
वसी शाह का जीवन और उनकी रचनाएँ आज भी साहित्य प्रेमियों के बीच बेहद लोकप्रिय हैं। उनकी शायरी ने उर्दू साहित्य को एक नया नज़रिया दिया है और वे आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बने रहेंगे। उनकी कविताएँ और शेर आज भी लोगों के दिलों में बसे हुए हैं और उर्दू शायरी की दुनिया में एक अमूल्य धरोहर के रूप में मौजूद हैं।
Saqi Faruqi-5) "पीता हूँ ग़म-ऐ-दुनिया भुलाने के लिए साक़ी जन्नत में कोनसा ग़म है इसलिए वहाँ पीने में मज़ा नहीं |"
(Piita Huu.n Gam-e-Duniya Bhulaane Ke Liye Saqi Jannat Mein Kaun Sa Gam Hai Iss Liye Vahaa.n Piine Mein Maza Nahi.)
साक़ी फ़ारूक़ी का जन्म 21 दिसंबर 1936 को गोरखपुर, उत्तर प्रदेश, भारत में हुआ था। उनका असली नाम मिर्ज़ा मोहम्मद फ़ारूक़ था, लेकिन वे साहित्य जगत में सउनकी रचनाओं में प्रेम, दर्द, समाज की वास्तविकता और राजनीतिक उत्पीड़न को प्रभावी ढंग से दर्शाया गया है। उन्होंने उर्दू शायरी को नए आयाम दिए और अपनी अनूठी शैली से साहित्य प्रेमियों के दिलों में ख़ास जगह बनाई।
साक़ी फ़ारूक़ी की प्रमुख रचनाओं में "साया साया", "तलाक़ी-ए-हवास" और "आहंग-ए-ख़ार" शामिल हैं।
साक़ी फ़ारूक़ी की शायरी की खासियत उनकी बेबाकी और सच्चाई है। वे अपनी शायरी के ज़रिए समाज की बुराइयों और अन्याय के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाते रहे। उनकी कविताओं में एक तरह की सामाजिक चेतना और विद्रोही स्वर गूंजता है। साक़ी फ़ारूक़ी की रचनाओं में जीवन की जटिलताओं और मानवीय संवेदनाओं का अनूठा मिश्रण है, जो पाठकों को सोचने पर मजबूर कर देता है। साक़ी फ़ारूक़ी का 19 जनवरी 2018 को लंदन में निधन हो गया, लेकिन उनकी शायरी और साहित्यिक योगदान आज भी ज़िंदा हैं। उनकी कविताएँ और ग़ज़लें उर्दू साहित्य में अमर हो गई हैं और आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी रहेंगी। साक़ी फ़ारूक़ी की शायरी ने उर्दू साहित्य को एक नई दिशा दी है और वे साहित्य प्रेमियों के दिलों में हमेशा ज़िंदा रहेंगी।
Kashif Ahmad-6) year 2019 "जन्नत में ग़म है दर्जों का तुझे पता नहीं, मिलती है वहाँ शराब-ऐ-तुहूर दुनिया की शराब में मज़ा नहीं |"
Jannat Mein Gam Hai Darjo.n Ka Tujhe Pata Nahi, Milti hai Vahaa.n Sharaab-e-Tahuur Duniyaa.n Ki Sharaab Mein Maza Nahi.
शायरी के उभरते सितारे काशिफ अहमद बॉलीवुड फिल्म इंडस्ट्री मै अपना काफी समय वेवातीत कर चुके हैं | ये एक अच्छे लेखक , निर्देशक होने के साथ ऐ अधिवक्ता भी है |
उनका जन्म 2 अप्रैल 1989 को अलीगढ़ , उत्तर प्रदेश, भारत में हुआ था। उन्होंने अपनी शिक्षा दिल्ली से प्राप्त की और बाद में बाद में वो मुंबई फिल्म इंडस्ट्री मई काम करने चले गए | काशिफ अहमद की शायरी में मौलिकता और संवेदनशीलता का विशेष महत्व है। उनकी रचनाएँ प्रेम, दर्द, समाज की वास्तविकता और जीवन के संघर्षों को बारीकी से उजागर करती हैं। काशिफ की रचनाओं में दुनिया की हकीकत छुपी हुई है। काशिफ की शायरी की खासियत उनकी सरल और प्रभावी भाषा शैली है, जो सीधे दिल तक पहुँचती है।
उनके शब्दों में एक खास तरह की खूबसूरती छुपी है । जहाँ हर शब्द एक कहानी कहता है। काशिफ अहमद की प्रतिभा और शायरी को समझते हुए, यहाँ www.hindishayaribest.com पर आपको हर भावना और परिस्थिति के लिए अनमोल शायरी मिलेंगी। ये एक ऐसा सफर है जहाँ आप अपने दिल की गहराइयों में जाकर काशिफ अहमद की कलम से जुड़ सकते हैं। यहाँ आपको शायरी का आनंद और ज्ञान दोनों मिलता है। यहाँ हर रूप में शायरी का एक रंग है, जो काशिफ की प्रतिभा का प्रतीक है। उनकी प्रतिभा और शायरी का सफर कभी खत्म नहीं होने वाला है और हर कोई उनकी कलम से प्रभावित है। काशिफ अहमद, एक सच्चा शायर, एक ऐसा नाम है जो शायरी की इस दुनिया में हमेशा अमर रहेगा। www.hindishayaribest.com via Best Hindi Shayari
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